Maharana Pratap ka jivan parichay – महाराणा प्रताप ने बहुत ही वीरता से जीवन जिया था| उसी के बारे में आज इस पोस्ट में हम अच्छे से जानेंगे| आपको महाराणा प्रताप की तमाम जानकारी इस पोस्ट में मिल जाएगी| महाराणा प्रताप बहुत ही वीरता से युद्ध करके अपना जीवन जिए हैं| किसी के सामने हाथ ना फैलाना, किसी के सामने झुकना नहीं यह बहुत बड़ी बात महाराणा प्रताप में थी|
महाराणा प्रताप अकबर जैसे महान सम्राट के सामने भी नहीं झुके और युद्ध करके महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया| आइए जानते हैं महाराणा प्रताप के बारे में और उनके जीवन के बारे में और इसके अलावा हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में संपूर्ण जानकारी|
महाराणा प्रताप के बारे में जानकारी | How to know maharana pratap ke bare mein
महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराणा उदयसिंह के घर हुआ था| कई लेखकों ने अपने हिसाब से महाराणा प्रताप का जन्म स्थान बताया है जैसे कि लेखक जेम्स टॉड ने बताया है कि महाराणा प्रताप का जन्मा मेवाड़ के कुंभलगढ़ में हुआ था|

वहीं पर इतिहासकार विजय नाहर का कहना है कि राजपूत समाज की परंपरा एवं महाराणा प्रताप की जन्म कुंडली के कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राज महलों में हुआ था|
महाराणा प्रताप का जन्म | 9 मई 1540 में |
महाराणा प्रताप की मृत्यु | 19 जनवरी 1597 में (५६ वर्ष तक) |
महाराणा प्रताप की मुख्य संतान | अमर सिंह प्रथम और भगवानदास (१७ बेटे) |
महाराणा प्रताप का पूरा नाम | महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया |
महाराणा प्रताप के पिता का नाम | महाराणा उदय सिंह |
महाराणा प्रताप के माता का नाम | महारानी जयवंता बाई |
महाराणा प्रताप का धर्म | सनातन (हिंदू) |
महाराणा प्रताप की पत्नी | महारानी अजबदे पंवार |
महाराणा प्रताप का जन्म स्थान | कुंभलगढ़ दुर्ग , जिला -राजसमंद ,राजस्थान ,भारत |
महाराणा प्रताप के माता पिता का नाम, जन्म , स्थान (maharana pratap ke mata , pita ka naam , birth date , birth place etc)
महाराणा प्रताप की माता का नाम जयवंता बाई (jaywanta bai) था बहुत ही निडर नारी थी| महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदयसिंह (maharaja udaysingh) था|
महाराणा प्रताप का ननिहाल भी पाली में ही था| हालांकि महाराणा प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ बिता है| दिलों के साथ ही वह युद्ध कला सीखते थे| अपने पुत्र को कीका कह कर पुकारते हैं इस वजह से भील महाराणा प्रताप को किका नाम से पुकारते थे|
पुस्तक हिंदूवा सूर्य महाराणा प्रताप के अनुसार प्रताप का जन्म (birth date of maharana pratap) हुआ था उस समय उदेशी युद्ध और और सुरक्षा से गिरे हुए थे| कुंभलगढ़ किसी भी तरह से सुरक्षित नहीं था| जोधपुर के शक्तिशाली राठौड़ी राजा मालदेव उन दिनों उत्तर भारत में सबसे शक्ति संपन्न थे|
महाराणा प्रताप की नाना एवं पाली के शासक सोनगरा अखेराज मालदेव का एक विश्वसनीय सामान और सेनानायक था|
महाराणा प्रताप के जन्म से जुड़ी जानकारी | महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ.
इस कारण पाली और मारवाड़ हर तरह से सुरक्षित था और राठौड़ी की सेना के सामने अकबर की शक्ति भी बहुत कम थी | इस कारण जब महाराणा प्रताप का जन्म होने वाला था तब उनकी माता को पाली भेजा गया|
वही 9 मई 1540 में महाराणा प्रताप का पाली में जन्म हुआ| बेटे के जन्म का समाचार मिलते ही उदयसिंह की सेना ने युद्ध आरंभ किया और मालवीय युद्ध में बनवीर के विरुद्ध विजय प्राप्त करके चित्तौड़ के सिंहासन पर अपना अधिकार कर लिया|
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
महाराणा प्रताप के पिता उदयसिंह की दूसरी रानी धीरबाई जिसे इतिहास में रानी भटियाणी के नाम से जाना जाता है, अपने पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी| प्रताप के उत्तराधिकारी होने पर इसके विरोध स्वरूप जगमाल अकबर के खेमे में चला जाता है|
महाराणा प्रताप का प्रथम राज्य अभिषेक 28 फरवरी 1572 में गोगुंदा में हुआ था, लेकिन विधि विधान से महाराणा प्रताप का तृतीय राज्य विषय 1572 ईस्वी सन् में कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था|
महाराणा प्रताप के संतानों के नाम | maharana pratap ke bete ka naam | maharana pratap ki patni ka naam | maharana pratap ki kitni rani thi
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 बार शादी की थी| उनकी पत्नियों और उनसे प्राप्त महाराणा प्रताप के पुत्र और पुत्रियों के नाम इस तरह है:-
महारानी अजबदे पंवार- अमरसिंह और भगवानदास
अमर बाई राठौड़-नतथा
सहमति बाय हाडा-पूरा
अलमदेबाई चौहान-जसवंतसिंह
रत्नावती बाई परमार-माल,गज ,क्लिंगू
लखाबाई-रायभाना
जसोंबाई चौहान – कल्याण दास
चंपा बाई जनथी –कल्ला , बालदार, दुर्जन सिंह
सोलन सोलनखिनीपुर बाई –साशा और गोपाल
फूलबाई राठौर-चंदा और सीखा
खीचर आशाबाई –हत्थी और राम सिंह
महाराणा प्रताप का शासनकाल और अकबर से युद्ध
महाराणा प्रताप के शासनकाल में सबसे रोचक तथ्य है कि मुगल सम्राट अकबर बिना युद्ध के ही प्रताप को अपने अधीन लाना चाहता था| इसलिए अकबर ने प्रताप को समझाने के लिए चार राजदूत नियुक्त किए जिसमें सर्वप्रथम सितंबर 1572 ईस्वी सन् में जलाल खा प्रताप के खेमे में गया|
दूसरे क्रम में मानसीह , तीसरे क्रम में भगवान दास, और चौथे क्रम में राजा टोडरमल प्रताप को समझाने के लिए पहुंचे|
लेकिन महाराणा प्रताप ने चारों को निराश किया इस तरह राणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता स्वीकार ने से साफ मना किया जिसके परिणाम स्वरूप हल्दीघाटी का बहुत बड़ा ऐतिहासिक युद्ध हुआ|
हल्दीघाटी का युद्ध | haldi ghati ka yuddh
यह युद्ध 4 जून 1576 में मेवाड़ तथा मुगलों के मध्य हुआ था| जिसमें मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था| भील सेना के सरदार, पानवा के ठाकुर राणा पूंजा सोलंकी थे| महाराणा प्रताप के साथ रहकर लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार हकीम खां सूरी थे|
लड़ाई का फल गोगुंदा के पास हल्दीघाटी में एक संकरा पहाड़ी पर था| महाराणा प्रताप ने लगभग 3000 सवारों और 400 धनु धारियों के बल पर मैदान में उतरे थे|
महाराणा प्रताप ने खुद को जख्मी पाया
हल्दीघाटी के युद्ध में मुगलों का नेतृत्व आमेर के राजा मानसिंह ने किया था| 3 घंटे से अधिक समय तक चले भयंकर युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने खुद को जख्मी पाया जबकि उनके कुछ लोगों ने उन्हें समय दिया, जिस दौरान महाराणा प्रताप पहाड़ियों से भागने में सफल रहे |
इस युद्ध में बिंदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान देकर महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की थी|
महाराणा प्रताप को सर्वश्रेष्ठ राजपूत राजा की बहादुरी की वजह से कहा गया
शत्रु सेना से गिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मान सिंह ने अपने प्राण देकर बचाया और महाराणा को युद्धभूमि छोड़ने के लिए बोला| शक्ति सिंह ने अपना अश्व देकर महाराणा प्रताप को बचाया| प्रिय अश्व चेतक की मृत्यु हुई|
हल्दीघाटी के युद्ध में और देवर और चप्पली की लड़ाई में महाराणा प्रताप को सर्वश्रेष्ठ राजपूत राजा और उनकी बहादुरी पराक्रम चारित्र्य धर्म निष्ठा त्याग के लिए जाना जाता है|
युद्ध में राजपूतों ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए
इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ| अगर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजई हुए| अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठी भर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते| पर ऐसा कुछ नहीं हुआ यह युद्ध पूरे 1 दिन चला और राजपूतों ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिए थे|
सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने-सामने लड़ा गया था| महाराणा प्रताप की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हट करने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगलों की सेना भागने भी लगी थी|
महाराणा प्रताप की मृत्यु | maharana pratap ki mrityu | महाराणा प्रताप की मृत्यु कब और कैसे हुई
उत्तर प्रदेश बंगाल बिहार और गुजरात के मुगल अधिकृत प्रदेशों में विद्रोह होने पर महाराणा प्रताप एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे| परिणाम स्वरूप अकबर उस विद्रोह को दबाने में उलझा रहा और मेवाड़ पर से मुगलों का दबाव कम हो गया|
इस बात का लाभ उठाकर महाराणा प्रताप ने 1585 मैं मेवाड़ की मुक्ति का प्रयत्न चालू कर दिया| महाराणा प्रताप की सेना ने मुगल चौकियों पर आक्रमण शुरू कर दिया और उदयपुर समेत 36 महत्वपूर्ण स्थान पर फिर से महाराणा प्रताप ने अपना अधिकार जमा लिया|
मेवाड़ को मुक्त कराने के संघर्ष में महाराणा प्रताप का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है| मेवाड़ पर लगा अकबर नाम का ग्रहण 1585 में खत्म हुआ|
हुमायूं कौन था उसके पिता का नाम क्या था.
औरंगजेब कौन था उसके बेटे का नाम क्या था.
उसके बाद महाराणा प्रताप अपने राज्य की सुख-सुविधा में जुट गए| परंतु इसके 11 वर्ष के बाद ही यानी कि 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई|
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर की प्रतिक्रिया (maharana pratap ki mrityu par akbar ka opinion)
अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था| दोनों की लड़ाई कोई व्यक्तिगत रेस का परिणाम नहीं बल्कि अपने सिद्धांतों और मूल्यों की लड़ाई थी| एक तरफ अकबर था जो अपने ग्रुप साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था और दूसरी तरफ महाराणा प्रताप थे जो भारत की स्वाधीनता के लिए लड़ रहे थे मातृभूमि के लिए संघर्ष कर रहे थे|
महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर को बहुत ही दुख हुआ क्योंकि वह महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक था और अकबर जानता था कि इस धरती पर महाराणा प्रताप जैसा वीर कोई नहीं है| यह समाचार सुनकर अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और अकबर की आंखों में आंसू आ गए|
महाराणा प्रताप की मृत्यु के समय अकबर लाहौर में था और वही उसे सूचना मिली थी कि महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई है|
अकबर कौन था और भारत पर कब हमला किया
बाबर कौन था और उसके बेटे का नाम क्या है
महाराणा प्रताप के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य | maharana pratap ka jivan parichay 10 line
१. महाराणा प्रताप मैं अपने पिता की युद्ध की नीति छापामार युद्ध प्रणाली का सफल प्रयोग करते हुए मुगलों पर सफलता प्राप्त की थी|
२. महाराणा प्रताप मुगल सम्राट अकबर से नहीं हारे बल्कि अकबर के सेनापतियों को धूल चटाई थी|
3. हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप जीते|
4.महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी में हारने के बाद स्वयं अकबर ने जून से दिसंबर 1576 तक तीन बार विशाल सेना के साथ महाराणा पर आक्रमण किया परंतु महाराणा प्रताप को खोज नहीं पाए|
5.अकबर , महाराणा प्रताप के जाल में फस कर अपनी सेना का विनाश कर बैठा|
6. महाराणा प्रताप ने सुंगा पहाड़ पर एक बावड़ी का निर्माण करवाया और सुंदर बगीचा लगवाया|
7.महाराणा की सेना में एक राजा, तीन राव, सात रावत, 15,000 अस्वरोही, सो हाथी, 20,000 पैदल और सो वाजिंत्र थे| इतनी बड़ी सेना को खाद्य सहित सभी व्यवस्थाएं महाराणा प्रताप देते थे|
8. सबसे अहम बात पृथ्वीराज चौहान जो अकबर के दरबारी कवि होते हुए भी महाराणा प्रताप के बहुत बड़े प्रशंसक थे|
9. अकबर भी महाराणा प्रताप की वीरता पर प्रशंसा करता था|
10. महाराणा प्रताप की कुल 11 रानियां थी
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