स्वामी विवेकानंद (swami vivekananda ke bare me-guru,thoughts,motivational vichar , anmol vichar in hindi)

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आज इस पोस्ट में हम स्वामी विवेकानंद के बारे में जानकारी लेंगे जिसमें स्वामी विवेकानंद का जन्म कहां हुआ था? पिता का नाम क्या था? माता का नाम क्या था? और स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे और स्वामी विवेकानंद ने कौन सा उपदेश दिया है ? स्वामी विवेकानंद के कौन से सूत्र है इस बारे में जानकारी लेंगे।

स्वामी विवेकानंद का जन्म तथा माता-पिता:(swami vivekananda ke mata pita ka naam)swami vivekananda ke bachpan ka naam

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धार्मिक प्रतिभा वाले थे ।

स्वामी विवेकानंद पहले नरेंद्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे बाद में प्रसिद्ध होकर स्वामी विवेकानंद के नाम से लोग जानने लगे। एक पत्थर तोड़ने वाले मजदूर की कहानी से क्या सिख सकते हैं आप

स्वामी विवेकानंद ने अलग-अलग जगह जाकर उपदेश दिए थे। जैसे अमेरिका के शिकागो शहर में 1893 में आयोजित सर्वधर्म सम्मेलन में भाग लिया था। विश्व धर्म परिषद के सदस्यों को “भाइयों और बहनों” शब्द द्वारा संबोधन करके सब को मंत्र मुग्ध कर दिया था। फिर उन्होंने विभिन्न देशों की यात्रा की और भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार किया।

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स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम क्या है? स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे? (swami vivekananda ke guru kaun the, swami vivekananda ke guru ka naam kya hai)

 स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर के काली माता के पुजारी थे। रामकृष्ण परमहंस का सरल और प्रबल व्यक्तित्व था। स्वामी विवेकानंद के बंगाल के नवयुवकों में सबसे तेजस्वी युवक स्वामी विवेकानंद थे।

उपदेश :(swami vivekanand ka updesh and short quotes in hindi)

स्वामी विवेकानंद ने उसे समय प्रचलित सामाजिक बुराइयों और धार्मिक कर्मकांड का कड़ा विरोध किया ।उन्होंने समाज सेवा और समाज सुधार का उपदेश दिया है।

 उनका स्पष्ट रूप से मानना था कि “जो धर्म या ईश्वर विधवा के आंसू ना पोंछ सके अथवा बेसहारा बच्चों के मुंह में रोटी का टुकड़ा ना डाल सके उस धर्म या ईश्वर में मैं विश्वास नहीं करता हूं ।” यानी के स्वामी विवेकानंद के समय विधवा की फिर से शादी नहीं हो सकती थी .

और यह विधवा पूरे आंसुओं से ही अपना जीवन व्यतीत करती थी यह बात स्वामी विवेकानंद को बहुत खटक रही थी दूसरी बात यह की जिस बच्चे की माता-पिता ना हो उसे बच्चों के मुंह तक अगर हम रोटी ना दे सके तो भगवान को भोग लगाया हुआ कभी सफल नहीं होगा

स्वामी विवेकानंद धर्म के बारे में | Swami viveknanda ki soch dharm ke bare mein

 स्वामी विवेकानंद कहते थे कि” पहले भोजन फिर धर्म ।” इस प्रकार स्वामी विवेकानंद यह सूत्र से कहना चाहते थे कि कोई भी धर्म का पालन भी करें पर हम भूखे हो तो भजन भी कैसे कर सकते हैं ?

और ना ही कोई धर्म का अच्छे से पालन कर सकते हैं। यानी के पहले हम अपने पर ध्यान देना चाहिए और दूसरों को भोजन करवाना चाहिए। वही सच्चा धर्म है।

स्वामी विवेकानंद मनुष्य मात्र में ईश्वर के दर्शन करते थे उनके मताअनुसार “मानव सेवा ही प्रभु सेवा है।” स्वामी विवेकानंद तटस्थ रूप से मानते थे कि अगर हमें परमात्मा की सेवा करनी है तो पहले मानव जाति की सेवा करनी पड़ेगी। 

जिस मानवी को कोई भी चीज वस्तु की जरूरत हो अगर वह चीज वस्तु हम ना दे पाए तो भगवान की सेवा कैसे कर सकेंगे ?भगवान यानी के प्रभु सिर्फ भाव के भूखे हैं सेवा तो मानवी के लिए जरूरी है। इस मानव की सेवा हमें करनी चाहिए।

स्वामी विवेकानंद युवकों से कहते थे “उठो,जागो और ध्येय  प्राप्ति तक लगे रहो”। स्वामी विवेकानंद युवकों से कहना चाहते थे कि अभी तो आप बहुत कम कर सकते हैं। मतलब कि अभी से ही उठो अपने काम के प्रति जागरूक रहो और जब तक आपने जो लक्ष्य बनाया है वह लक्ष्य तक न पहुंचे तब तक आपको रुकना नहीं है।

swami vivekananda ke vichar in hindi

 सामान्य तौर पर प्राणी भी जीते है, गाय कुत्ते सब जीते है मगर कोई लक्ष्य प्राप्ति के लिए कोई ध्येय प्राप्ति के लिए जिए तो वही मनुष्य है, क्योंकि यह सिर्फ मनुष्य ही प्राप्त कर सकता है। कुत्ते सिर्फ खा पीकर सोते हैं, गाय सिर्फ खा पीकर सो सकती है। जहां पहुंचना है वहां पहुंचने की क्षमता मात्र “इंसानों “में है।

उनकी वाणी में ज्ञान की गहराई अनुभवों का निचोड़ और शब्दों की ताजगी मिलती है वह नई विचारधारा के प्रतीक और भविष्य के लिए महान शक्ति के स्रोत बने।

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