कोर्णाक सूर्य मंदिर | about konark temple in hindi

भारत में दो सूर्य मंदिर प्रसिद्ध है| एक गुजरात में मोढेरा में स्थापित है, दूसरा उड़ीसा राज्य के जगन्नाथपुरी में है| इसमें हम कोर्णाक में स्थित सूर्य मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे|G20 मैं भी कोर्णाक के सूर्य मंदिर के रथ के पहिए को दिखाया है जहां नरेंद्र मोदी जी उपस्थित होने वाले सभी देश के मेहमानों का स्वागत कर रहे थे|

इसी बात पर हमें यह आश्चर्य होता है कि G20 मैं कोर्णाक के सूर्य मंदिर का पहिया लेने का क्या कारण हो सकता है| g20 अभी बहुत ही धूम मचा रहा है क्योंकि भारत का भी समय खूब अच्छा चल रहा है| उसी बात को कोर्णाक के सूर्य मंदिर का पहिया दर्शाता है जो बहुत ही प्राचीन समय में समय को देखने के लिए काम आता था|

कोर्णाक सूर्य मंदिर | konark temple ke bare mein

सूर्य मंदिर भारत के उड़ीसा राज्य के जगन्नाथ पुरी जिले में समुद्र तट पर है| सूर्य मंदिर पूरी शहर से तकरीबन 35 किलोमीटर उत्तर पूर्व में तेरहवीं शताब्दी यानी के 1250 में बना हुआ है| मंदिर का पूर्वी गंग वंश के राजा प्रथम नरसिंह देव को दिया जाता है| सन 1984 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में भी मान्यता दी है|

आज का जाने दो भारतीय ₹10 की नोट के पीछे कोर्णाक का सूर्य मंदिर दर्शाया जाता है जो भारतीय सांस्कृतिक विरासत को दिखाती है|

कोर्णाक सूर्य मंदिर ke bare me
कोर्णाक सूर्य मंदिर

कोणार्क के सूर्य मंदिर का प्राचीन महत्व | konark temple ke bare mein

कोर्णाक का मंदिर सूर्य देव को समर्पित है| यहां के स्थानीय लोग इसे बिरंचि नारायण भी कहते हैं| इसी कारण इस क्षेत्र को अर्क क्षेत्र कहा जाता है|अर्क का मतलब होता है सूर्य|

पुराणों की कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र सांब को कोई श्राप से कोढ रोग हो गया था| साम्ब ने मित्र वन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर पूर्णांक में 12 वर्षों तक तपस्या करके सूर्य देव को प्रसन्न किया था| सूर्य देव, जो सभी रोगों के नाश करने वाले देव थे, तो साम्ब का भी रोग का निवारण कर दिया था|

उसी बात पर साम्ब ने सूर्य भगवान का बहुत बड़ा मंदिर का निर्माण करने का निश्चय किया| अपने रोग का निवारण होने के बाद साम्ब को चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए उसे सूर्य देव की एक मूर्ति मिली| यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से देव शिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनाई थी|साम्ब ने यह मूर्ति मित्र वन में एक मंदिर में स्थापित की सभी से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा|

कोणार्क के सूर्य मंदिर का इतिहास | कोणार्क सूर्य मंदिर का रहस्य wikipedia | konark mandir ka itihas

एक कथा अनुसार गंग वंश के राजा नृसिह देव प्रथम ने अपने वंश का वर्चस्व सिद्ध करने के लिए मंदिर का निर्माण करने का आदेश किया| 1200 वास्तु कारों और कारीगरों की सेना ने अपनी प्रतिभा को दिखाते हुए यह मंदिर को उर्जा से परिपूर्ण करने के लिए 12 वर्षों की अथाग मेहनत से निर्माण किया|

राजा नृसिह देव प्रथम ने पहले ही अपने राज्य के 12 वर्षों की कर प्राप्ति के बराबर धन खर्च कर दिया था| इतना खर्च कर के बाद भी मंदिर के निर्माण की पूर्णता दिख नहीं रही थी| तब राजा ने एक निश्चित तिथि तक कार्य पूर्ण करने का कड़ा आदेश दे दिया था|

वास्तु कारों की टीम ने पहले ही अपनी पूरी मेहनत और हिम्मत लगा दी थी| तब विशु महाराणा का 12 वर्षीय पुत्र धर्मपाद आगे आया| उसने मंदिर के अब तक के निर्माण का वह निरीक्षण किया| धर्मपाद ने मंदिर का निरीक्षण किया परंतु उसे मंदिर निर्माण का व्याहवारिक ज्ञान नहीं था.

परंतु उसने मंदिर स्थापत्य के शास्त्रों का पूर्ण अध्ययन किया हुआ था| धर्मपाद मनी के अंतिम केंद्रीय शीला को लगाने का सुझाव दिया| यह सुझाव सबको आश्चर्य में डालने वाला था क्योंकि, धर्मपाद ने जो सुझाव दिया उसके अनुसार सूर्य मंदिर में भगवान सूर्य की प्रतिमा हवा में तैरती हुई रह सकती थी|

यहां तक की मंदिर का शिखर ऐसे लोह चुंबक के इस्तेमाल से बनाया गया था कि सभी स्तंभ अच्छे से टिक सके और शायद इसी वजह से भगवान सूर्य की प्रतिमा पर सबसे पहला सूर्य का किरण पड़ता है,और भगवान सूर्य की प्रतिमा के बीच में लगा हीरा चमकता है जिससे पूरे मंदिर में उजाला हो जाता है|

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धर्मपाद ने कोर्णाक के सूर्य मंदिर के विशेषता से निर्माण के बाद अपनी छाती के हित के लिए अपनी जान तक दे दी| धर्मपाद का शव सागर तट पर मिला था|

कोर्णाक के सूर्य मंदिर का स्थापत्य

कोर्णाक शब्द ‘कोंण’ और ‘अर्क’ शब्दों से बना हुआ है|’अर्क’ का अर्थ होता है सूर्य, और कोण का अभिप्राय किनारा रहा होगा| कोणार्क के सूर्य मंदिर का निर्माण लाल रंग के पत्थरों तथा काले ग्रेनाइट के पत्थरों से हुआ है| इससे तकरीबन 1236-1264 ईसा पूर्व गंग वंश के तत्कालीन सामंत राजा नृसिह से देव ने बनवाया था|

यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध स्थानों में से एक है| इसे यूनेस्को द्वारा सन् 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था|

कलिंग शैली में निर्मित इस मंदिर में सूर्य देव को व्रत के रूप में विराजमान किया गया है| तथा संघ और पत्थरों पर उत्कृष्ट सिर्फ कारीगरी देखने को मिलती है| संपूर्णा मंदिर को 12 जोड़ी चक्रों के साथ-साथ घोड़ों से खींचते हुए निर्मित किया गया है जिसमें सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है|

परंतु वर्तमान समय में सात घोड़ों में से एक ही घोड़ा दिख रहा है बाकी थे घोड़े खंडित हो गए हैं| मंदिर के आधार को सुंदरता प्रदान करने वाले यह 12 चक्र दरअसल साल के 12 महीनों को दर्शाते हैं| और प्रत्येक चक्र 8 आरओ से मिलकर बना है जो 1 दिन के 8 प्रहर को दर्शाते हैं|

मुख्य मंदिर तीन मंडप में बना हुआ है| जिसमें दो मंडप खंडित हो चुके हैं| 30 से मंडप में जहां मूर्ति थी वहां अंग्रेजों ने स्वतंत्रता से पहले ही रेत और पत्थर भरवा कर सभी द्वारों को स्थाई रूप से बंद करवा दिया था ताकि यह मंदिर और क्षतिग्रस्त ना हो सके| इस मंदिर में सूर्य भगवान की तीन प्रतिमाएं है;

बाल्यावस्था – जो उदित सूर्य यानी कि उगते सूर्य को दर्शाता है जो मूर्ति 8 फीट ऊंची है|

युवावस्था – जो मध्यान सूर्य को दर्शाता है जिसकी मूर्ति 9.५ ऊंची है

प्रौढ़ावस्था – अपराह सूर्य जिसकी मूर्ति 3.5 ऊंची है|

कोर्णाक सूर्य मंदिर का रहस्य

कोणार्क के सूर्य मंदिर में बहुत सारे रहस्य छुपे हुए हैं| एक रहस्य तो यह है कि,

कोणार्क के सूर्य मंदिर का मुख्य रहस्य चुंबकीय ताकत है| इस मंदिर का ऊपर का बना हुआ गुंबज चुंबकीय शक्ति लिए हुए हैं| प्रचलित कथाओं की माने तो मंदिर के ऊपर 51 मैट्रिक का चुंबक लगा हुआ था| जिसका प्रभाव इतना अधिक था कि समुद्र से गुजरने वाले जहां तक इस चुंबकीय क्षेत्र के कारण जलते हुए भटक जाया करते थे और मंदिर की ओर खींचे चले आते थे|

51 मैट्रिक का लगाया पत्थर के कारण जहाज खींचे चले आते थे| इस पत्थर के कारण पौधों के चुंबकीय दिशा निरुपम यंत्र सही दिशा नहीं बताते थे| इस कारण अपने पौधों को बचाने हेतु, मुस्लिम नाभिक इस पत्थर को निकाल ले गए| यह पत्थर एक केंद्रीय शिला का कार्य कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे| जैसे यह हटा उसके कारण मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया और वह गिर पड़ी|

परंतु इस घटना का कोई ऐतिहासिक विवरण नहीं मिलता और ना ही ऐसे किसी चुंबकीय केंद्रीय पत्थर के अस्तित्व का कोई सबूत मिला है|

कोर्णाक मंदिर और काला पहाड़

कोणार्क मंदिर के गिरने से संबंधित एक अति महत्वपूर्ण सिद्धांत काला पहाड़ से जुड़ा है| उड़ीसा में लिखे गए इतिहास कि तूने तो काला पहाड़ में विशन 1508 में यहां आक्रमण किया था और कोर्णाक मंदिर के साथ उड़ीसा के अन्य अभी मंदिरों को नष्ट किया था|

उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिर के मदन जी कहते हैं कि, काला पहाड़ ने उड़ीसा पर हमला किया और कोणार्क मंदिर के साथ कई हिंदू मंदिर को भी नष्ट किया था| हालांकि कोर्णाक मंदिर की दीवार है 20 से 25 फीट मोटी होने के कारण उसे तोड़ना असंभव था, तो उसने किसी भी प्रकार से मेहराब की शीला को हिलाने का प्रयास किया, जो इस मंदिर के गिरने का मुख्य कारण है|

मेहराब की शीला फटने से मंदिर धीरे-धीरे गिरने लगा और छत से भारी पत्थर गिरे जिसके कारण मुख्य साला की छवि नष्ट हो गई| इस कारण काला पहाड़ उड़ीसा के मंदिरों को नष्ट करने का कारण बना|

कोर्णाक मंदिर की वास्तुकला

कहा जाता है कि कोणार्क के सूर्य मंदिर में वास्तु दोष के कारण ही मात्र 800 साल में क्षीण होने लगा|

1. मंदिर के निर्माण में रथ की आकृति होने के कारण पूर्व दिशा एवं ईशान कोण खंडित हो गए|

2. पूर्व दिशा से देखें तो लगता है कि, ईशान और अग्नि कोणों काटकर यह वायव्य और नए रसिया नैरूत्य तीनों कोणों की ओर बढ़ गया है|

3. मुख्य मंदिर के पूर्व द्वार के सामने ही नृत्यशाला है, कहा जाता है कि इससे पूर्वी द्वार अवरोधित होने के कारण अनुपयोगी होता है|

4.नैऋर्त्य कोण मैं छाया देवी के मंदिर की नींव मुख्य मंदिर से नीची है, उसके कारण माया देवी का मंदिर और नीचा हो गया|

5. अग्निकोण मैं विशाल कुआं है|

6. दक्षिण और पूर्व दिशा में विशाल द्वार है जिसके कारण मंदिर का वैभव और महत्व क्षीण हो गए|

इस तरह देखा जाए तो कोर्णाक का सूर्य मंदिर बहुत ही खूबियों वाला है तभी तो G20 मैं नरेंद्र मोदी जी ने कोर्णाक के सूर्य मंदिर का पहिया दिखाया था और वही सबका स्वागत भी किया था|

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